राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़ता मध्य प्रदेश ?

      
भोपाल। मध्य प्रदेश में 2018 हुए विधान सभा चुनाव में जनता ने किसी भी दल को सरकार बनाने लायक बहुमत नहीं दिया था। 230 सीटों वाली मध्य प्रदेश विधान सभा में सबसे बड़े दल के तौर पर कांगे्रस को 114 सीटें मिली थीं तो भारतीय जनता पार्टी को 109 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। यानी कांगे्रस से भाजपा को मात्र छहः सीटें कम मिली थीं,लेकिन इन्ही छहःसीटों की कमी के चलते भाजपा के हाथ से सत्ता निकल गई थी और कांगे्रस ने चार निर्दलीय,दो बसपसा और एक सपा विधायक की मदद से सरकार बना ली थी। इस बात का दर्द भाजपा कभी छुपा नहीं पाई। अक्सर उसके नेता कहते रहते थे कि मध्ध्य प्रदेश की कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांगे्रस सरकार जल्द गिर जाएगी। भाजपा नेताओं के दावे में दम भी लगता था और जब गत दिवस कमलनाथ सरकार से नाराजगी के चलते चारों निर्दलीय और सपा-बसपा के तीन विधायकों ने बागी तेवर अपनाए तो कांगे्रस की सरकार संकट में आ गई। कांगे्रस ने भाजपा पर आरोप लगाना शुरू कर दिया कि वह कमलनाथ सरकार को अस्थितर करना चाहती है। यह लग भी रहा था तो दूसरी ओर  भाजपा ने इस आरोप का खंडन किया कि वह मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है। 
  गौरतलब हो ,भाजपा नेताओं पर कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि वह कुछ विधायकों को हरियाणा के एक होटल ले गए हैं। इस पर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह  ने कहा है कि मामला उनके (कांग्रेस) घर का है, आरोप हम पर लगाते हैं। उनका काम केवल आरोप लगाना है। अब इतने गुट हैं कांग्रेस में कि आपस में ही मारामारी मची हुई है। चैहान ने कांगे्रस के आरोप को  दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि भाजपा का इससे कोई लेना-देना नहीं है। भाजपा ऐसा कुछ नहीं कर रही है। उन्होंने इसे कांग्रेस का अंदरूनी कलह बताते हुए कहा कि मुख्यमंत्री कमलनाथ और पार्टी के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह को इसका जवाब देना चाहिए। भाजपा का पूरे प्रकरण से कोई लेना-देना नहीं है।  
    बहरहाल, मध्य प्रदेश विधान सभा में आंकड़ों की गणित पर नजर दौड़ाई जाए तो 230 विधानसभा सीटों वाले मध्य प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इस चुनाव में कांग्रेस को 114 सीटें मिली थीं, हालांकि वह बहुमत के आंकड़े से दो सीट दूर रह गई थी। बता दें कि मध्यप्रदेश में बहुमत के लिए 116 सीटें चाहिए। वहीं, भाजपा को 109 सीटें मिली थीं। इसके अलावा निर्दलीय को चार, बसपा को दो सीटें और सपा को एक सीट मिली थी। मध्यप्रदेश में चुनाव परिणाम के बाद चार निर्दलीय, सपा के एक और बसपा ने एक विधायक ने कांग्रेस को समर्थन देने का एलान किया था। ऐसे में कमलनाथ को बहुमत से चार ज्यादा यानी 120 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। लेकिन, कमलनाथ सरकार में शामिल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के विधायक अक्सर कांग्रेस से अपनी नाराजगी जाहिर करते भी दिखाई दिए हैं। यदि कमलनाथ सरकार से पांच विधायक टूटते हैं तब एमपी में सरकार का गिरना तय है। वहीं अभी तक सूत्रों के हवाले से जो जानकारी मिल रही है उसमें भाजपा के पास कांग्रेस के तीन और एक निर्दलीय विधायक है। ऐसे में सरकार तो सुरक्षित है लेकिन भविष्य में इसके गिरने की संभावना ज्यादा है।
    राजनीतिक पंडितों की माने तो मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 109 सीटें मिली थीं, लेकिन अभी विभिन्न कारणों से भाजपा की सदस्य संख्या घटकर 107 हो गई है। अगर कांग्रेस के तीन बागी पार्टी के खिलाफ जाते हैं तब दल बदल कानून के हिसाब से उनकी सदस्यता खत्म हो जाएगी। वहीं अगर चार निर्दलीय, बसपा के दो और सपा का एक विधायक भाजपा के पाले में आते हैं तब भी वह बहुमत के आंकड़े को नहीं छू पाएगी।
  सूत्रों के हवाले से भाजपा के दो विधायक नारायण त्रिपाठी व शरद कोल राज्य नेतृत्व से नाराज बताए जा रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने रीवा, शहडोल संभाग के विधायकों की बैठक बुलाई थी, इसमें से दोनों विधायक नदारद रहे। ऐसे में भाजपा कभी ऐसी सरकार नहीं बनाना चाहेगी जो कभी भी संकट में आ जाए। अगर मध्यप्रदेश में किसी भी दल के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं होगा तब राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा। ऐसे में राज्यपाल की सिफारिश पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। 

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